#अनिल सोनी तो था ही बदमाश, उसके साथ तो ऐसा होना ही था! कुछ ऐसा ही बोल रहे है #कथित सफेदपोश?
#MDS। ( उमेश नेक्स, क्रांतिकारी रिपोर्टर 9424538555 ) 12 अप्रेल 2019 / बुधवार की रात शहर में एक बार फिर गोलियां चली... जो एक परिवार की जिंदगी में अंधेरा कर गयी...? ये गोली सिर्फ एक अनिल सोनी पर नही चली... बल्कि उस उम्मीद को पर भी चली है, जिसकी वजह से 2 सालों से क्षेत्र में बदमाशों के आतंक की घटनाओ को रोक रही थी... कुछ हद तक क्षेत्र में शांति थी...! लेकिन इसके विपरीत शहर के कुछ कथित सफेदपोश इस हत्याकाण्ड पर अजीब सी बात शहर में फैला रहे है... और कह रहे है कि अनिल सोनी कोई समाजसेवी नही था बल्कि बदमाश था... उसके साथ तो ऐसा होना ही था...? अब समझ में यह नही आता है कि कोई अपने निजी फ़ायदे या नुक़सान के चक्कर में किसी के अच्छे काम को कैसे नजरअंदाज कर सकता है...! अगर शहर की भलाई सोचना ही बदमाशी है तो फिर ऐसी सोच रखने वाला ये क्रांतिकारी रिपोर्टर भी बदमाश है...! इन 2 सालों में मेने अनिल सोनी को नजदीक से देखा है... पहले क्या किया मुझे नही पता पर अभी तो वो लोगों की मद्दत ही करता था... इस शहर को भयमुक्त करने का जुनून रखता था... अपने भयमुक्त संस्थान के बोर्ड पर देश के महापुरुषों के चित्र लगा कर वो अपनी मंशा साफ कर चुका था... मासूम के साथ दुष्कर्म हो या कर्जे के बोझ में दब कर मरे सिंधी युवक की मद्दत की बात हो... वीरेंद्र ठन्ना हत्याकाण्ड में सजा दिलाने का प्रयास हो, पत्रकार कमलेश जैन हत्याकाण्ड हो या पत्रकार ओंकार सिंह पर हमले की वारदात हो... नपाध्यक्ष प्रहलाद बंधवार दादा हत्याकाण्ड हो या अभी कुछ दिनों पूर्व सड़क दुर्घटना में मारे गए सुरेश सिंधी की बात हो... सभी मामलों में अनिल की सक्रियता और हर संभव सहयोग की मंशा यदि बदमाशी है... तो फिर ये बदमाशी वाकई में ठीक थी... और समाज को इस बदमाशी की आज बहुत बड़ी ज़रूरत थी...! नाकारा, बेकार और नैतिकता की बड़ी बड़ी बातें करने वाले, बदमाशों से हाथ मिला कर चलने वाले सफेदपोश लोगों से तो ये बदमाश अनिल सोनी ही ठीक था...! और वैसे भी बदमाशों से तो बदमाश ही लड़ सकता है... कथित इज्जतदार तो सिर्फ इज्ज़त से बदमाशों को पैसे ही देता है...? क्रांतिकारी रिपोर्टर का मानना है कि अनिल सोनी को आप कैसा भी मानो पर मेरी एक बात को मानो कि वो जैसा भी था... पर वो आपके हरे भरे खुशहाल बग़ीचे का वो टूटा, फूटा, सड़ा, गला जैसा मानों वैसा दरवाजा था... जो आपके बगीचे को उजड़ जाने से रोकता था...? अब वो दरवाजा नही रहा... यानी अब कोई भी आपके बग़ीचे को उजाड़ने के लिए घुस आएगा...! हमारे पास तो न बग़ीचा, न गमला... अब फिक्र वो करें जिन्होंने बड़ी मेहनत से सब इक्क्ठा किया... पर अनिल सोनी का साथ नही दिया...! वो तो लड़ते लड़ते मर गया... उसका परिवार भी उसकी इस मौत पर मातम नही बल्कि गर्व कर रहा है... क्योंकि डर डर के जीने वाला रोज मरता है... पर लड़ लड़ कर जीने वाला मर कर भी जिंदा रहता है... और फिर आँसू तो जमाना वहाँ बहाता है जहाँ पहले आदमी का जमीर मर जाता है... बाद में वो नालायक़ मरता है... और उसी गम में जमाना रोता है... पर अनिल सोनी के साथ ऐसा नही है... वो चाहे मर गया हो पर उसका ज़मीर मरते दम तक जिंदा रहा... और वो इस शहर की मरते दम तक फिक्र करता रहा...! उसका जिगरी दोस्त अजय सोनी जो इन बदमाशों की गोली से जिंदगी भर के लिए विकलांग हो गया... पर कल जो उसने जो कुछ कहाँ उससे लगा कि इसका जज्बा आज भी दो पैरों पर खड़े होने वाले लोगों से ज्यादा मजबूत था... पुलिस कप्तान और कलेक्टर के सामने उसने दिल जीतने वाली बात कही... और कहा कि हमारा जो होना था हो गया, मैं विकलांग हो गया, मेरा भाई जैसा दोस्त बदमाशों के हाथों मारा गया... पर साहब आपसे हाथ जोड़ कर निवेदन है कि मेरे शहर के किसी भी व्यक्ति के साथ अब ऐसा ना हो... प्लीज़ ऐसा कुछ कीजिये...! इस दौर में जहाँ आदमी सिर्फ अपनी और सिर्फ अपनी ही फिक्र करता है... वहाँ इस शहर या क्षेत्र की फिक्र करना यदि बदमाशी है... तो ईश्वर ये बदमाशी सबको दे... इसके बाद भी किसी को लगता है कि ऐसी सोच रखने वाले अजय सोनी का दोस्त अनिल सोनी बदमाश या गलत आदमी था... तो फिर इस सभ्य समाज का अब कुछ नही हो सकता...?
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