वाकई में #मेरा शहर शांति का #टापू है...? गुंडे आते है, गोलियां चलाते है, भले लोग #मारे जाते है, फिर शांति हो जाती है...!
#MDS। ( उमेश नेक्स, क्रांतिकारी रिपोर्टर 9424538555 ) 3 फरवरी 2019 / क्या, वाकई में मेरा मंदसौर शहर शांति का टापू है...! अचानक कुछ गुंडे आते है, गोलियां चलाते है, भले लोग मारे जाते है, थोड़ी हलचल होती है, कही रुदन तो कही जनता आक्रोशित होती है... और कुछ ही समय में फिर से पहले जैसी शांति हो जाती है...? मरने वाला मर जाता है... उसका परिवार अकेले इंसाफ के लिए लड़ता रहता है... और नतीजा ज़ीरो ही निकलता है...! ऐसा हर बार होता है क्योंकि अपराधियों और उनके आकाओं को भी पता है कि ये मंदसौर शहर वाकई में शांति का टापू है... यहाँ हर कोई शांति चाहता है... चाहे पड़ोस में खूब चीख़ने चिल्लाने की आवाजें आ रही हो... फिर भी वो कानों में रुई डाल कर बैठ जाता है... क्योंकि वो शांति चाहता है...? इस तरह एक के बाद एक का नम्बर आता जाता है... जैसे कसाई के यहाँ बाहर बंधे बकरों का आता है... जिसके कटने की बारी आती है वो बे बे चिल्लाता है... बाकियों को तो सिर्फ चारा ही दिखता है... और उनका खाना पीना चालू रहता है...! 17 जनवरी 2019 की शाम 7 बजे भी फिर से ऐसा ही कुछ होता है... और शहर का जननायक, गरीबों का मसीहा, पूरे शहर के उठने से पहले जागने वाला, एक फोन पर हर किसी के लिए सड़क पर आ जाने वाला... दादा यानी नगर पालिका अध्यक्ष प्रहलाद बंधवार को गोली मार दी जाती है... शहर में आक्रोश की लहर छा जाती है... बाजार अपने आप बन्द हो जाता है... अस्पताल में लोगों का हुजूम लग जाता है... कोई रोता है कोई चीख़ता चिल्लाता है... कोई आक्रोश में सड़क पर बैठ जाता है... शहर का आम हो या ख़ास हर कोई इस घटना से भयभीत हो जाता है...! डर जाता है, सहम जाता है... अगले दिन पशुपतिनाथ की भव्य शाही सवारी निकालने वाले शिव के सारथी कहलाने वाले प्रहलाद दादा की अंतिम सवारी यानी अंतिम यात्रा में हजारों का हुजूम उमड़ जाता है... क्या महिला, क्या बच्चे, शहर का हर नागरिक दादा के अंतिम दर्शन के लिए सड़कों पर आ जाता है... जो दादा से कभी मिला नही... जिसका कभी दादा से कोई काम पड़ा नही... वह गरीब भी दादा के मौत पर आंसू बहाता है...! और बहाए भी क्यों नही दादा तो मेरे शहर का असली दादा था... जो लोगों की प्रोपर्टीयों पर नही लोगों के दिलों पर राज करता था...! इतना सब कुछ हुआ... हत्यारा भी पकड़ा गया... पर हत्या के पीछे का राज आज तक नही पता चला... दादा के उठावने के बाद ही परिवार के लोगों को दादा के अस्थि कलश के साथ शहर के चौराहे पर अनशन करना पड़ा... कुछ संस्थाओं ने धरना प्रदर्शन भी किया...! पर वो भी जैसे तैसे खत्म करवा दिया गया... पर अब तक दादा के परिवार वालों उनके चाहने वालों को इंसाफ नही मिला है...? जो दादा सुबह घर से निकलते वक्त जेब में हजारों रुपये सिर्फ इसलिए ले कर निकलता था... कि रास्ते में कोई जरूरतमंद मिल जाये और वो दादा के पास से खाली हाथ ना जाये...! ऐसे दादा को कोई गोली सिर्फ 25 हजार की उधारी के लिए मार देगा... वो भी ढेड़ लाख की पिस्टल से... फिर इस गुनाह का कोर्ट केस लड़ने के लिए वो 3 लाख वकील की फीस देगा...? यानी 25 हजार की उधारी के चक्कर में कोई साढ़े चार लाख खर्च करेगा क्या...? साथ में पुलिस की मार और जेल जाना पसंद करेगा क्या...? यही नही दादा की हत्या के बाद आरोपी की एक घुमटि और अंकुर अपार्टमेंट स्थित अवैध दुकान जिससे वो हजारों रुपये महीना कमाता था... उसे 25 हजार के पीछे तुड़वा सकता था क्या...? और जो दादा दूसरों के लाखों के कर्जे खुद चुका देता था... वो दादा किसी के 25 हजार रुपये रखेगा क्या...? ऐसी कई बातें है जो दादा हत्याकांड के बाद शहर के हर चौराहे पर चल रही है... क्योंकि दादा हत्याकांड की कहानी अच्छे अच्छों को तो ठीक फुटपाथ पर रहने वालों को भी हजम नही हो रही है...? फिर भी मेरा शहर आराम से सोया है...! क्योंकि ये शांति का टापू है... यहाँ अचानक मगरमच्छ आता है... किसी का भी शिकार कर जाता है... फिर भी पूरा टापू शांति से रहता है...! यहाँ किसी से भी पूछों तो वो कहता है कि शहर में भगतसिंह का पैदा होना बहुत जरूरी है... पर मेरे घर में नही पड़ोस में पैदा होना जरूरी है... और वो पड़ोस कही दिखता ही नही है...? क्रांतिकारी रिपोर्टर तो सिर्फ इतना ही कहना चाहता है कि जो दादा दूसरों को न्याय दिलाने के लिए हर वक़्त सड़क पर रहता था... उस दादा की हत्या के सही राज और उनके परिवार को सही न्याय मिले... इसके लिए हमें भी प्रयास करना चाहिए... वरना फिर से कोई दादा इस शहर में पैदा होने से पहले दस बार सोचेगा... कि किन बेकार के लोगों के बीच पैदा हो रहा हूँ... जो मेरी तो ठीक कल अपने साथ होने वाले अन्याय के लिए भी खड़ा नही हो रहा है...? अरे अच्छे भविष्य की चिंता में तो आज मेहनत कर रहे हो... पर अपराध युक्त भविष्य से मुक्त होने के लिए तो कुछ भी नही कर रहे हो...?
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